सरसा, संदीप कम्बोज। एल्यूमिनियम की तरह ही नॉनस्टिक बर्तन भी इंसानी शरीर के लिए बेहद खतरनाक हैं। शाह सतनाम जी स्पेशलिटी अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डा. गौरव इन्सां ने बताया कि नॉनस्टिक बर्तन बनाने के लिए इन पर पीटीएफई (पोलिटेरा फ्लूरो एथेलेन) नामक केमिकल की परत चढ़ाई जाती है। इसका एक कॉमन ब्रांड नेम टेफलॉन है। यह केमिकल्स पीएफसी(परफ्लूरोकार्बनस)नामक केमिकल ग्रुप में आते हैं। रिसर्च में पाया गया है कि नॉनस्टिक बर्तनों को जब गर्म किया जाता है तो इनसे जहरीले गैस व कैमिकल्स पैदा होते हैं। ये कैमिक्लस दिखाई तो नहीं देते पर शरीर के लिए बेहद खतरनाक होते हैं। खाना पकाने के दौरान ये खाने में तो मिलते ही हैं साथ ही वातावरण में भी घुल जाते हैं। कुछ जांच में पाया गया कि इन कैमिकल्स से छह तरह की जहरीली गैसें निकलती हैं।
एक रिसर्च में जब छह तरह के बर्तनों को गर्म किया गया तो प्रयोगकर्ता यह देखकर हैरान रह गए कि सिर्फ दो से पांच मिनट गर्म करने में ही ये कैमिकल बनने शुरू हो गए थे। इन गैसों से वहां काम करने वाले लोगों में फ्लू जैसे लक्षण (खांसी,जुकाम इत्यादि)पैदा हो जाते हैं। इसलिए इसे टफलोना फ्लू भी कहते हैं। जहरीलेपन का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस कमरे में अगर कोई पक्षी इत्यादि हो तो वह कुछ सैकेंड में ही मर सकते हैं। यदि ऐसे बर्तनों को और ज्यादा गर्म किया जाए तो पीएफआईबी नामक कैमिकल पैदा हो जाते हैं जो कि इतने खतरनाक हैं कि कुछ देशों में सेना द्वारा इन्हें लड़ाई के दौरान प्रयोग में लाया जाता है।
नॉनस्टिक बर्तनों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाला एक और
केमिकल पीएफओए जानवरों मेें लिवर, पैनक्रियास, अण्डकोश आदि के कैंसर के साथ-साथ प्रजनन क्षमता भी कम करता है इंसानों में भी इसका संबंध गुर्दे एवं पेशाब की थैली के कैंसर से देखा गया है।
एल्यूमिनियम को नकारा, स्टील-तांबे के बर्तनों को अपनाया
डेरा सच्चा सौदा के 110वें मानवता भलाई कार्य का दिखने लगा असरबर्तनों की दुकानों पर उमड़ने लगी भीड़
सरसा, संदीप कम्बोज। आजकल शहर की बर्तनों की दुकानों में एक अलग नजारा देखने को मिल रहा है। विभिन्न कालोनियों में रहने वाले लोग अपने घरों के सिल्वर के पुराने बर्तन बेचने के लिए आ रहे थे और स्टील, तांबा, पीतल इत्यादि के बर्तनों की खरीददारी कर रहे थे। यह सब असर पूज्य गुरू संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां द्वारा रविवार को सत्संग के दौरान 110वें मानवता भलाई कार्य के रूप में शुरू किए गए कार्य ‘सिल्वर व नॉन स्टिक बर्तनों के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को जागरूक करने’ का है।
बुधवार को भी सरसा शहर के चांदनी चौक, रोड़ी बाजार इत्यादि में लोगों ने बर्तनों की खूब खरीददारी की। ये लोग अपने घरों से पुराने एल्यूमिनियम के बर्तनों को बेच रहे थे तथा उनकी जगह पर स्टील, तांबा, पीतल के साथ-साथ लोहे के तथा मिट्टी के बर्तनों की खरीददारी कर रहे थे।
दिखा दिपावली सा नजारा
दिपावली त्यौहार से पहले धनतेरस के त्यौहार पर बर्तनों की खरीददारी होती है। उस दिन लोग पुराने बर्तन बेचकर नए बर्तन खरीदते हैं। कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है बर्तनों की दुकानों पर। डेरा सच्चा सौदा से जुडेÞ सैंकड़ों लोगों ने एल्यूमिनियम के बर्तनों को ठुकराकर दूसरी धातुआें के बर्तनों को अपनाया। वहीं स्थानीय रोड़ी बाजार स्थित हरियाणा बर्तन भंडार के मालिक बैनीराम ने बताया कि सोमवार सुबह से ही उनकी दुकान पर एल्युमिनियम के बर्तन बेचने वालों व स्टील के बर्तन खरीदने वालों की भीड़ लगी हुई है। उन्होंने बताया कि पिछले तीन दिनों में उनकी दुकान में पड़े स्टील के सारे कुकर बिक चुके हैं तथा कई ग्राहकों को उन्हें खाली हाथ लौटाना पड़ा। वहीं दुकान पर बर्तन खरीद रहे मा. श्याम सुंदर ने बताया कि उन्होंने पूज्य गुरु जी द्वारा चलाए मानवता भलाई के 110वें कार्य के तहत अपने घर में रखे सभी एल्युमिनियम के बर्तन बेच दिए हैं तथा स्टील व अन्य धातुओं के बर्तनों की खरीददारी की है।
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