धीमा जहर है एल्यूमिनियम व नॉनस्टिक के बर्तन

        अभियान। आमजन को जागरूक कर रही डेरा सच्चा सौदा की साध-संगत

               कहीं आप भी तो नहीं दे रहे मौत को दावत ?

रोजाना 4 से 5 मिलीग्राम एल्यूमिनियम का सेवन करते हैं हम
सरसा (संदीप कम्बोज)। इंसानी जिंदगी में जहर घोल रहे एल्यूमिनियम व नॉनस्टिक के बतज़्नों को त्यागकर उनके स्थान पर लोहे, स्टील व मिट्टी के बतज़्न प्रयोग में लाए जाने की अलख जलाने के लिए मानवता भलाई में अग्रणीय सवज़्धमज़् संगम डेरा सच्चा सौदा ने अभियान छेड़ दिया है। गत रविवार को शाह सतनाम जी धाम में आयोजित रूहानी सत्संग के दौरान पूज्य गुरू संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने मानवता पर एक और बड़ा उपकार करते हुए एल्यूमिनियम व नॉनस्टिक के बतज़्नों के दुष्प्रभावों बारे आमजन को जागरूक करने के नए व पुनीत कायज़् की शुरूआत की तो परिणामस्वरूप साध-संगत अपने घरों से तो एल्यूमिनियम व नॉनस्टिक के बतज़्नों को बॉय-बॉय कर ही रही है साथ ही अन्य लोगों को भी जागरूक करने का सिलसिला शुरू हो चुका है। विभिन्न ब्लॉकों में साध-संगत घर-घर जाकर लोगों को इन बतज़्नों के दुष्परिणाम बताने के साथ ही इन्हें त्यागकर इनके स्थान पर लोहे,स्टील व मिट्टी के बतज़्न प्रयोग में लाने की अपील कर रही है। अभियान रंग लाने लगा है तथा लोग जागरूक हो रहे हैं। 
यदि आप भी रसोई में एल्यूमिनियम व नॉनस्टिक के बतज़्न प्रयोग कर रहे हैं तो सावधान हो जाईए। आज हम आपको बताने जा रहे हैं इन बतज़्नों की वास्तिवकता जिसे सुनकर आपके होश उड़ जाएंगे। इन बतज़्नों में खाना पकाना मौत को दावत देने के समान है क्योंकि खाना पकाने की प्रक्रिया के दौरान एल्यूमिनियम भोजन और पानी में घुल जाता है और खाना खाने वाले के शरीर में अनेक तरह की बीमारियों की वजह बनता है। कुछ रिसचज़् में तो यहां तक सामने आया है कि एल्यूमिनियम शरीर में कैंसर का भी कारण बन रहा है।
ये बतज़्न हमारे शरीर में जहर का काम कर रहे हंै। हम इन बतज़्नों से जो भी खाना बनाते हंै वो खाना भी हमारे लिए एक धीमा जहर बन जाता है, आजकल ये हमारी रसोई में कड़ाही व और भी कई प्रकार के बतज़्नों के रूप में मौजूद हैं। बाजार में 70 से 80 प्रतिशत तक बतज़्न एल्यूमिनियम के ही पाए जाते हैं, उस के पीछे एक कारण यह भी है कि ये बतज़्न अन्य धातुओं की तुलना में सस्ते होते हैं, और ये गमीज़् के बहुत अच्छे सुचालक होते हैं, ये जल्दी गरम हो कर खाना बनाने में हमारा समय बचाते हैं। एल्यूमीनियम के बतज़्न की लागत कम है, लेकिन इन में बना हुआ खाना हमारे शरीर के लिए बहुत हानिकारक है। आम तौर पर प्रतिदिन हम 4 से 5 मिलीग्राम एल्यूमीनियम की मात्रा हमारे शरीर में पहुँचती है सिफज़् इसलिए क्यूंकि हमारा भोजन एल्युमीनियम के बतज़्नों में बनता है, एल्यूमीनियम की इस बड़ी मात्रा को निकालने में हमारा शरीर असमथज़् है जो हम एल्यूमीनियम के बतज़्न में बना भोजन और कुछ भी उबला हुआ पीने के माध्यम से ले रहे हैं।


क्यूं हानिकारक हैं एल्यूमिनियम के बर्तन
शाह सतनाम जी स्पेशलिटी अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. गौरव इन्सां के अनुसार एल्यूमिनियम अत्यधिक प्रतिक्रियाशील होने के कारण यह भोजन के साथ मिल कर हमारे शरीर में प्रवेश कर जाता है। एल्यूमिनियम भारी धातु है और हमारा उत्सजज़्न तंत्र इसे पचाने और शरीर से बहार निकलने में असमथज़् है, अगर हम इन बतज़्नों में बना हुआ खाना कई सालों तक खाते रहे तो ये धातु हमारे शरीर को कई गंभीर बीमारियों में ड़ाल देती है जिनके बारे में लोगों को पता तक नहीं चलता, यह मुख्य रूप से मस्तिष्क पर काम करता है और मानव मस्तिष्क की कोशिकाओं के विकास को रोक देता है। एल्यूमिनियम का मुख्य लक्षण है पेट में ददज़् होना, जब आप पेट में ददज़् महसूस करते हैं तो यह एल्यूमिनियम विषाक्तता के कारण हो सकता है।

पेट के रोग
एल्यूमिनियम के बतज़्न प्रयोग करने पर एसिडीटी, बदहजमा, पेट फूलना, पेट में ददज़् रहना, आंतों की सूजन, जिससे दस्त व कब्जी दोनों हो सकते हैं। मुंह, आंत व अमास्य में जख्म पैदा हो जाते हैं। क्रोहन्स डीसीज जिसमें आंत की सूजन के साथ दस्त व दस्तों में खून बहने लगता है। चिकित्सक इसे गलती से क्रोनीक एमोएबिक डाईसैंट्री के रूप में डायग्नोज करके गलत इलाज देकर मरीज की सेहत का नुकसान कर सकता है। 

चमड़ी पर दुष्प्रभाव
एल्यूमिनियम के बतज़्न में पकाए गए खाने के सेवन से चमड़ी पर धब्बे, एग्जीमा, डैंडरफ (सिकरी)आदि चमड़ी की बीमारियां पैदा हो जाती हैं।

हड्डियों पर दुष्प्रभाव
एल्यूमिनियम हड्डियों के विकास को रोकता है तथा हड्डियां कमजोर, पतली पड़ जाती हैं और टूट जाती हैं।

मस्तिष्क पर भी बुरा असर
एल्यूमिनियम शरीर में जाने पर दिमाग पर बहुत बुरा असर डालता है। इससे स्मरण शक्ति क्षीण हो जाती है जिससे मरीज को वतज़्मान की बातें याद नहीं रहती लेकिन भूतकाल की बातें याद रहती हैं। इस बीमारी का कोई ईलाज नहीं है, ध्यान शक्ति की कमी तथा तनाव पैदा हो जाता है। बच्चों के मस्तिष्क का विका:स भी प्रभावित होता है।

गुदोज़्ं पर दुष्प्रभाव
एल्यूमिनियम गुदेज़् में जाकर जम जाता है तथा गुदेज़् के फेल होने का कारण बनता है।
बीमारियों से लडऩे की शक्ति क्षीण हो जाती है।
यदि एल्यूमिनियम खून में चला जाए तो सभी अंगों पर दुष्प्रभाव डालता है।

एल्यूमिनियम विषाक्तता के कारण उत्पन्न रोग
अस्थमा
वात रोग
टी.बी. शुगर
स्मृति हानि और अवसाद
अवसाद और चिंता
मुंह में अल्सर       
दमा परिशिष्ट
गुदेज़् की विफलता
अल्जाइमर        
नेत्र समस्या
दस्त
याददाश्त कम



अंग्रेजों ने की थी शुरूआत
बता दें कि देश में एल्यूमिनियम के बतज़्न 100-150 साल पहले अंग्रेजों द्वारा शुरू किए गए थे वो भी भारतीय क्रांतिकारियों को कमजोर बनाने के लिए जेलों में इनका प्रयोग किया जाता था। क्योंकि उसमें से धीरे-धीरे विष हमारे शरीर में जाता है। उससे पहले धातुओं में पीतल, काँसा, चाँदी, फूल आदि के बतज़्न ही चला करते थे और बाकी मिटटी के बतज़्न प्रयोग में लाए जाते थे। 


नॉनस्टिक बतज़्न भी हैं सेहत के लिए खतरनाक
सरसा। एल्यूमिनियम की तरह ही नॉनस्टिक बतज़्न भी इंसानी शरीर के लिए बेहद खतरनाक हैं। शाह सतनाम जी स्पेशलिटी अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डा. गौरव इन्सां ने बताया कि नॉनस्टिक बतज़्न बनाने के लिए इन पर पीटीएफई (पोलिटेरा फ्लूरो एथेलेन) नामक केमिकल की परत चढ़ाई जाती है। इसका एक कॉमन ब्रांड नेम टेफलॉन है। यह केमिकल्स पीएफसी(परफ्लूरोकाबज़्नस)नामक केमिकल ग्रुप में आते हैं। रिसचज़् में पाया गया है कि नॉनस्टिक बतज़्नों को जब गमज़् किया जाता है तो इनसे जहरीले गैस व कैमिकल्स पैदा होते हैं। ये कैमिक्लस दिखाई तो नहीं देते पर शरीर के लिए बेहद खतरनाक होते हैं। खाना पकाने के दौरान ये खाने में तो मिलते ही हैं साथ ही वातावरण में भी घुल जाते हैं। कुछ जांच में पाया गया कि इन कैमिकल्स से छह तरह की जहरीली गैसें निकलती हैं।
एक रिसचज़् में जब छह तरह के बतज़्नों को गमज़् किया गया तो प्रयोगकताज़् यह देखकर हैरान रह गए कि सिफज़् दो से पांच मिनट गमज़् करने में ही ये कैमिकल बनने शुरू हो गए थे। इन गैसों से वहां काम करने वाले लोगों में फ्लू जैसे लक्षण (खांसी,जुकाम इत्यादि)पैदा हो जाते हैं। इसलिए इसे टफलोना फ्लू भी कहते हैं। जहरीलेपन का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस कमरे में अगर कोई पक्षी इत्यादि हो तो वह कुछ सैकेंड में ही मर सकते हैं। यदि ऐसे बतज़्नों को और ज्यादा गमज़् किया जाए तो पीएफआईबी नामक कैमिकल पैदा हो जाते हैं जो कि इतने खतरनाक हैं कि कुछ देशों में सेना द्वारा इन्हें लड़ाई के दौरान प्रयोग में लाया जाता है।
नॉनस्टिक बतज



नों के निमाज़्ण में इस्तेमाल होने वाला एक और केमिकल पीएफओए जानवरों मेें लिवर, पैनक्रियास, अण्डकोश आदि के कैंसर के साथ-साथ प्रजनन क्षमता भी कम करता है इंसानों में भी इसका संबंध गुदेज़् एवं पेशाब की थैली के कैंसर से देखा गया है।

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