आए रूहों के वणजारे
परमपिता शाह सतनाम जी महाराज की मीठी यादें
संदीप कम्बोजरूहानी ताकतों के बेनजीर बादशाह और शहनशाहों के शहनशाह, पातशाहों के पातशाह परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने 25 जनवरी 1919 को अवतार धारण किया। कुल मालिक मानस का चोला धार के पूजनीय माता आसकौर जी की पवित्र कोख से पूजनीय पिता सरदार वरियाम सिंह जी के घर श्री जलालआणा साहिब में अवतरित हुए। अनामी के वासी 25 जनवरी की शुभ घड़ी को जब प्रकट हुए तो सम्पूर्ण धरा जय-जयकार करती हुई चहक उठी और अम्बर अनहद नादों से गूंज उठा! देव-फरिश्ते आरती उतारने लगे। देवों के देव, महादेव, सारी लोकाई कृपा निधान, दयालु दाता का गुणगान गाने लगी। लोक, परलोक में मंगलगान होने लगे। परियां पुष्प बरसाने लगी और इस पुष्प-वृष्टि के बहाने कुल मालिक के दर्श का अमृत पीने लगीं।
सा घड़ी सुलखनी जित सतगुर जग में आए
सा धरत सुहावनी या पर खेल खिलाए
धन धन पिता, धन सु जननी जिनी लाड़-लड़ाए।
सा रुत वडभागिनी, जित माही मेल-मिलाए ।
धर्म के सानिध्य में हुआ पालन पोषण
आदरणीय मामा जी व आप जी के पूजनीय माता जी धार्मिक विचारों वाले थे। उनकी उच्च धार्मिक शिक्षाओं की बदौलत आप जी बचपन से ही धर्म-कर्म की ओर प्रवृत रहने लगे। आप जी बचपन से ही विनम्र, दयालु, सहनशील और मिलनसार थे। हर किसी से प्रेम-प्यार, मीठा बोल चाल, आदर सत्कार व शिष्टाचार के गुण आप जी के आदर्श जीवन की महान संस्कारशाला है। आप जी के बड़े-बुजुर्गों का सिख धर्म की परम्पराओं, मान्यताओं में रचे, बसे होने के कारण आप जी उन धार्मिक मर्यादाओं का पूरा पालन करते। पवित्र गुरुवाणी को आप जी मन चित से मानते और कर्म में सर्वोपरि प्रकट करते।
गुरू को सर्वसव अर्पण
आप जी ने शाह मस्ताना जी महाराज को अपना गुरू, पीरो-मुर्शिद मान अपने आप को उनके अर्पण कर दिया। बेपरवाह जी जहां भी सत्संग करने या आश्रम बनाने के लिए जाते आप जी वहीं पहुंच जाते। आप जी उनके ही आशिक हो गए। घर-परिवार, खेती-बाड़ी अर्थात दुनियावी काम-धंधों की बजाय आप जी बेपरवाह जी के दर्शन करने और सत्संग, सेवा को अहमियत देने लगे। उनके प्यार में दीवाने हो गए। कई-कई किलोमीटर का सफर तय करके भी आप जी बेपरवाह जी के पास पहुंच जाते। कभी गर्मी-सर्दी, भूख, प्यास की परवाह नहीं की।
किन्ना सोहण लंबा ऊंचा गभरू जवान
यह सब आप जी के रब्बी जलाल का ही करिश्मा था और तो और स्वयं शहनशाह मस्ताना जी आप जी पर मोहित थे।जिक्र है कि एक बार बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज सरसा से दिल्ली जा रहे थे। आप जी शहर में हिसार रोड़ पर खड़े थे। जैसे ही बेपरवाह जी की दृष्टि आप जी पर पड़ी तो बेपरवाह जी खुशी से फरमाने लगे, ‘‘वाह भई, क्या सुन्दर बाडी है! कितने सोहणे, लम्बे, ऊंचे कद वाला जवान है!’’ इस प्रकार शहनशाह जी पहली झलक में ही आप जी के मनमोहने रूप के कायल हो गए।
1960 में बने दूसरे पातशाह
बेपरवाह मस्ताना जी ने आपजी को 28 फरवरी 1960 को गुरगद्दी सौंप कर आप जी को डेरा सच्चा सौदा के दूसरे पातशाह के रूप में जाहिर किया। (अब इस दिन को डेरा सच्चा सौदा में महा रहमो कर्म दिवस के रूप में भण्डारे के तौर पर मनाया जाता है) आप जी पूरे 30 वर्ष तक दूसरे पातशाह के रूप में विराजमान रहे और लोगों को रूहानियत की शिक्षा से जोड़ा।
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