त्याग की मिसाल थे पूज्य बापू जी


                                        

                   ‘पूज्य बापू जी’ की पावन स्मृति पर विशेष

सरसा। पूर्ण संत महात्मा कभी भी इस धरती पर आकर नहीं बनते, बल्कि वे धुर दरगाह से ही परिपूर्ण होते हैं और समय आने पर संत सतगुरू ही परमात्मा के हुक्म अनुसार उन्हें दुनिया में जाहिर कर देते हैं। वह धरती, घर, माता-पिता परमात्मा की विशेष कृपा से निवाजे होते हैं, जहां परमात्मा अवतार धारण करते हैं। ऐसी ही महान शख्सियत के मालिक थे पूज्य बा
पूज्य बापू जी बचपन से ही भक्ति भाव के मालिक थे। आप जी के घर कोई भी व्यक्ति उम्मीद लेकर आया तो खाली नहीं गया। आप जी साधू-महात्माओं की सेवा बड़े ही आदर, श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ करते थे। पूज्य बापू जी के पवित्र मुखारबिंंद से निकला एक-एक शब्द लोगों को आपसी प्यार, शान्ति, सेवा और एक दूसरे का हमदर्द बनने की प्रेरणा देता था। आप जी गरीबों के मसीहा थे। गांव में गरीब लड़कियों की शादी करवाना, नौकरों को बिना भेदभाव किये अपने हिस्से से अधिक फसल देना, देसी घी के पीपे देना इत्यादि के बारे में जब कोई पूछता कि यह क्या कर रहे हो तो उनका जवाब बड़ा सरल सा होता था कि सारा दिन काम करते हैं बेचारे, सब कुछ इनका तो है।

पू नम्बरदार मग्घर सिंह जी जिनके घर खुद खुदा पूजनीय गुरू संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने अतवार धारण किया। दौलत-शोहरत, ऊंचा खानदान, अच्छी जमीन-जायदाद के बावजूद पूज्य बापू जी की सादगी सामने वाले को गहराई से छू जाती थी। पूज्य बापू जी का जन्म राजस्थान के श्री गंगनागर जिला के गांव श्री गुरूसर मोडिया में पूजनीय पिता सरदार चिता सिंह जी और पूजनीय माता संत कौर जी के घर हुआ। आप जी के ताऊ सरदार संत सिंह जी के घर कोई संतान न होने के कारण उन्होंने आप जी को गोद ले लिया। इसी कारण आप श्री संत सिंह जी और पूज्य माता चंद कौर जी को ही अपने माता-पिता मानते थे। आप जी की शादी गांव किक्करखेड़ा तहसील अबोहर जिला फाजिल्का में पूज्य गुरदित्त सिंह जी और माता जसमेल कौर जी की सुपुत्री पूजनीय (माता) नसीब कौर जी इन्सां के साथ हुई।

                                    पूज्य गुरू जी के प्रति अपार स्रेह

पूज्य बापू जी को पूज्य गुरू संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के ईश्वरीय रूप के बारे में रिद्धी-सिद्धी के मालिक संत त्रिवेणी दास जी से पहले ही पता चल चुका था। उनको पता था कि पूज्य गुरू जी 23 वर्ष तक उनके घर रहेंगे और इस उपरांत समाज के उद्धार के लिए पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महराज द्वारा लगाई गई ड्यूटी के अनुसार अपने आध्यात्मिक मिशन पर लग जाएंगे। पूज्य बापू जी को पता होने के बावजूद भी इस बारे में परिवार को भनक तक नहीं लगने दी। विवाह से 18 वर्ष बाद संतान होने पर जहां पूज्य बापू जी और पूज्य माता जी की खुशियों का कोई टिकाना न रहा। अपने हाथों से पूज्य गुरू जी को चूरमा खिलाना, कंधे पर बैठाकर खेत या किसी भी अन्य स्थान पर ले जाना, टूर्नामेंट में गए पूज्य गुरू जी का रास्ते में बेसबरी से इंतजार करना आप जी के पुत्र स्नेह को दर्शाता है। पूज्य गुरू जी कई बार पूज्य बापू जी को कहते कि हमें अब शर्म आती है, हम बड़े हो गए हैं हमें कंधों पर न उठाया करो। परंतु पुत्र स्नेह में लबालब पूज्य बापू जी इसकी परवाह न करते।

                                पूज्य परमपिता जी ने कदम-कदम पर की संभाल

भक्ति में हर पल लीन रहने वाले पूज्य बापू जी को पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने पुत्र की अनमोल दात देने से पहले ही दर्श-दीदार देने शुरू कर दिए थे। जमीन-जायदाद अच्छी होने के कारण कुछ व्यक्ति आप जी से ईर्ष्या करने लगे जिसके चलते वह आप जी पर हमला करने की योजनाएं बनाते, लेकिन सृजनहार पूजनीय परम पिता जी आप जी को अंदर से दर्शन देकर कोई और रास्ता दिखा देते। शरारती तत्व लाख प्रयासों के बावजूद भी आप जी का बाल भी बांका नहीं कर सके। कई बार आप जी को पानी लगाने का समय याद न रहता, तो पूज्य परम पिता जी दर्शन देकर याद करवाते। इस उपरांत आप जी परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज से नाम की अनमोल दात प्राप्त कर उनके परम भक्त बने।

                                                हंसते-हंसते दी विदाई ...
आज के इस घोर कलियुग में कोई जिगर का टुकड़ा मांग ले तो बड़ों-बड़ों के इरादे डोल जाते हैं, लेकिन पूज्य बापू जी और पूज्य माता जी की इस त्याग की उदाहरण इतिहास के पन्नों पर नई इबारत लिख गई। विवाह से 18 वर्ष बाद अपनी संतान (पूज्य गुरू जी )को इंसानियत के मिशन पर भेजने का जब समय आया तो पूज्य गुरू जी को एक पल भी अपनी आंखों से ओझल न करने वाले पूज्य बापू जी ने यह कार्य अपने हाथों पूरा किया। उन्होंने पूज्य परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के बचनों को स्वीकार करते हुए इतनी धन-दौलत, जमीन-जायदाद के इकलौते वारिस को हंसते-हंसते विदाई दी। इस उपरांत पूज्य बापू जी ने आदरणीय साहिबजादे जसमीत सिंह जी इन्सां, आदरयोग साहिबजादी बहन चरणप्रीत कौर जी इन्सां और आदरयोग साहिबजादी बहन अमरप्रीत कौर जी इन्सां जिनकी आयु उस समय 5 वर्ष से भी कम थी, का उत्तम दर्जे का पालन-पोषण किया। उनकी शिक्षा-लेखन और विवाह की सारी जिम्मेदारी भी निभाई।


पूज्य गुरू संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां आज करोड़ों की तादाद में लोगों को बुराइयों से तौबा करवाकर रुहानियत से जोड़ चुके हैं। अपने इकलौते पुत्र रत्न को मानवता के उद्धार के लिए समर्पित करने के लिए मानवता सदा पूज्य बापू नम्बरदार मग्घर सिंह जी की अहसानमंद रहेगी। पूज्य बापू जी के त्याग के इस जज्बे को डेरा सच्चा सौदा की साढ़े 5 करोड़ से अधिक साध-संगत लाखों-करोड़ों बार नमन, सलाम, सजदा करती है। शाह सतनाम जी ग्रीन एस वेल्फेयर फोर्स विंग पूज्य बापू जी के सम्मान में उनकी पवित्र पुण्यातिथि को परमार्थी दिवस के रूप में मनाती है। आज पूज्य बापू जी की याद को समर्पित मानवता भलाई के लिए शाह सतनाम जी धाम में रक्तदान कैंप लगाया जा रहा है।

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